रविवार, 28 जून 2020

स्वर की महिमा

"अन्धकारे दीपिकाभिर्गच्छन्न स्खलति क्वचित् ।
एवं स्वरैः प्रणीतानां भवन्त्यर्थाः स्फुटा इति ।।"

जैसे अंधकार में मसालों की सहायता से चलता हुआ कहीं ठोकर नहीं खाता । उसी प्रकार स्वरों की सहायता से किए गए अर्थ स्फुट (संदेह रहित) होते हैं ।


शुक्रवार, 2 जून 2017

प्रत्याहारों का परिचय

अथ शब्दानुशासनम्
====================
(१.) अइउण्।
(२.) ऋलृक्।
(३.) एओङ्।
(४.) ऐऔच्।
(५.) हयवरट्।
(६.) लण्।
(७.) ञमङणनम्।
(८.) झभञ्।
(९.) घढधष्।
(१०.) जबगडदश्।
(११.) खफछठथचटतव्।
(१२.) कपय्।
(१३.) शषसर्।
(१४.) हल् ।
इति प्रत्याहार-सूत्राणि
इन सूत्रों से प्रत्याहार तो सैकडों बन सकते हैं, किन्तु पाणिनि मुनि ने अष्टाध्यायी में केवल ४१ प्रत्याहारों का ही व्यवहार किया है ।
इसके अतिरिक्त एक उणादिसूत्र में "ञमन्ताड्डः" (उणादिसूत्र---१.११४) से ञम् प्रत्याहार तथा एक "चय्" प्रत्याहार "चयो द्वितीयः शरि पौष्करसादेः" (वार्तिक--८.४.४७) इस वार्तिक से बनेगा ।
इन दोनों को मिलाकर कुल ४३ प्रत्याहार हुए ।
प्रत्याहार दो प्रकार से बनाए जाते हैं । आदि अक्षर से और अन्तिम अक्षर से भी ।
सबसे पहले अन्तिम अक्षर से सूत्रानुसार बनाते हैं ---
(१.) प्रथम सूत्र है---अइउण् । इस सूत्र में अन्तिम अक्षर है--ण् । इसे आदि अक्षर अ से एक प्रत्याहार बनेगा--अण् ।
इससे एक प्रत्याहार बनेगाः--"अण्" । इस प्रत्याहार का उपयोग "उरण् रपरः" (१.१.५०) में होता है ।
इस अण् प्रत्याहार में तीन वर्ण सम्मिलित है--अइउ । अण् कहने से इन तीनों वर्णों का ग्रहण होगा । इसी प्रकार अन्य प्रत्याहार में भी जानें ।
(२.) ऋलृक्---इस सूत्र से तीन प्रत्याहार बनेंगे---
(क) अक्---"अकः सवर्णे दीर्घः" (६.१.९७) ।
(ख) इक्---"इको गुणवृद्धी" (१.१.३)
(ग) उक्---"उगितश्च" (४.१.६)
उक् प्रत्याहार में उ, ऋ, लृ ये तीन वर्ण ग्रहण होंगे ।
(३.) एओङ्---इस सूत्र से केवल एक प्रत्याहार बनेगा---"एङ्" । "एङि पररूपम्" (६.१.९१)
(४.) ऐऔच्---इस सूत्र से चार प्रत्याहार बनेंगेः---
(क) अच्---"अचान्त्यादि टि" (१.१.६३)
(ख) इच्---"इच एकाचोम्प्रत्ययवच्च" (६.३.६६)
(ग) एच्---"एचोयवायावः" (६.१.७५)
(घ) ऐच्---"वृद्धिरादैच्" (१.१.१)
अच् प्रत्याहार में अ से लेकर च् तक के सभी वर्ण ग्रहण होंगे । इसमें कुल ९ वर्ण हैं, जो सभी स्वर हैं--अ,इ,उ,ऋ,लृ,ए,ओ,ऐ,औ
प्रत्याहार का यही लाभ है कि इन्हें बार बार नहीं गिनना पडता । बस केवल अच् कह दो, सभी स्वर वर्ण गृहीत हो जाएँगे ।
(५.) हयवरट्---इस सूत्र से केवल एक ही प्रत्याहार बनेगा--"अट्" । "शश्छोSटि" (८.४.६२)
(6.) लण्---इस सूत्र से तीन प्रत्याहार बनेंगे----
(क) अण्---"अणुदित्सवर्णस्य चाप्रत्ययः" (१.१.६८)
(ख) इण्---"इण्कोः" (८.३.५७)
(ग) यण्---"इको यणचि" (६.१.७४)
(७.) ञमङणनम्---इस सूत्र से चार प्रत्याहार बनेंगेः---
(क) अम्---"पुमः खय्यम्परे" (८.३.६)
(ख) यम्--"हलो यमां यमि लोपः" (८.४.६३)
(ग) ङम्---"ङमो ह्रस्वादचि ङमुण् नित्यम्" (८.३.३२)
(घ) ञम्---"ञमान्ताड्डः" (उणादिसूत्र--१.११४)
(८.) झभञ्--इस सूत्र से केवल एक प्रत्याहार बनेगा---"यञ्" ।
"अतो दीर्घो यञि" (७.३.१०१)
(९.) घढधष्---इससे दो प्रत्याहार बनेंगे---झष् और भष् ।
"एकाचो बशो भष् झषन्तस्य स्ध्वोः" (८.२.३७)
(१०.) जबगडदश्---इस सूत्र से कुल ६ प्रत्याहार बनेंगे---
(क) अश्---"भोभगोSघो अपूर्वस्य योSशि" (८.३.१७)
(ख) हश्---"हशि च" (६.१.११०)
(ग) वश्---"नेड् वशि कृति" (७.२.८)
(घ) झश् और (ङ) जश्---"झलां जश् झशि" (८.४.५२)
(च) बश्---"एकाचो बशो भष् झषन्तस्य स्ध्वोः" (८.२.३७)
(११.) खफछठथचटतव्---इससे केवल एक प्रत्याहार बनेगा---"छव्"।
"नश्छव्यप्रशान्" (८.३.७)
(१२.) कपय्---इससे ५ प्रत्याहार बनेंगे---
(क) यय्---"अनुस्वारस्य ययि परसवर्णः" (८.४.५७)
(ख) मय्---"मय उञो वो वा" (८.३.३३)
(ग) झय्---"झयो होSन्यतरस्याम्" (८.४.६१)
(घ) खय्---"पुमः खय्यम्परे" (८.३.६)
(ङ) चय्---"चयो द्वितीयः शरि पौष्करसादेः" (वार्तिक--८.४.४७)
(१३.) शषसर्---इस सूत्र से ५ प्रत्याहार बनेंगेः---
(क) यर्---"यरोSनुनासिकेSनुनासिको वा" (८.४.४४)
(ख) झर्--"झरो झरि सवर्णे" (८.४.६४)
(ग) खर्---"खरि च" (८.४.५४)
(घ) चर्--"अभ्यासे चर्च" (८.४.५३)
(ङ) शर्--"वा शरि" (८.३.३६)
(१४.) हल्---इस सूत्र से ६ प्रत्याहार बनेंगेः---
(क) अल्---अलोSन्त्यात् पूर्व उपधा" (१.१.६४)
"अल्" प्रत्याहार में प्रारम्भिक अ वर्ण और अन्तिम वर्ण ल् से "अल्" प्रत्याहार बनता है । अल् कहने से सभी वर्ण गृहीत होंगे ।
(ख) हल्---"हलोSनन्तराः संयोगः" (१.१.७)
हल् प्रत्याहार में "हयवरट्" के "ह" से लेकर "हल्" के "ल्" तक सभी वर्ण गृहीत होंगे । "हल्" प्रत्याहार में सभी व्यञ्जन वर्ण आ जाते हैं ।
(ग) वल्---"लोपो व्योर्वलि" (६.१.६४)
(घ) रल्---"रलो व्युपधाद्धलादेः संश्च" (१.२.२६)
(ङ) झल्---"झलो झलि" (८.२.२६)
(च) शल्---"शल इगुपधादनिटः क्सः" (३.१.५४)
इस प्रकार कुल ४३ प्रत्याहार अन्तिम वर्ण से बनाए गए ।
अब हम आदि वर्ण से भी ये ४३ प्रत्याहार बनाकर दिखायेंगे । यहाँ केवल प्रत्याहार के नाम दिखा रहे हैं । सूत्र ऊपर निर्दिष्ट हैं । वहाँ से देख लें ।
(१.) अकार वर्ण से ८ प्रत्याहार बनेंगेः--अण्, अक्, अच्, अट्, अण्, अम्, अश्, अल् ।
(२.) इकार से तीन प्रत्याहार बनते हैंः---इक्, इच्, इण् ।
(३.) उकार से एकः---उक् ।
(४.) एकार से दे---एङ् , एच् ।
(५.) ऐकार से एक---ऐच् ।
(६.) हकार से दो---हश्, हल् ।
(७.) यकार से पाँच---यण्, यम्, यञ्, यय्, यर् ।
(८.) वकार से दो---वश्, वल् ।
(९.) रेफ से एक---रल् ।
(१०.) मकार से एक---मय् ।
(११.) ङकार से एक---ङम् ।
(१२.) झकार से पाँच---झष्, झश्, झय्, झर्, झल् ।
(१३.) भकार से एक---भष् ।
(१४.) जकार से एक--जश् ।
(१५.) बकार से एक--- बश् ।
(१६.) छकार से एक---छव् ।
(१७.) खकार से दो---खय्, खर् ।
(१८.) चकार से एक---चर् ।
(१९.) शकार से दो----शर्, शल् ।
ये कुल ४१ प्रत्याहार हुए और ऊपर दो अन्य प्रत्याहार भी बताएँ हैं । इस प्रकार कुल ४३ प्रत्याहार अष्टाध्यायी में उपयोग के लिए बनाए गए हैं ।
जो अष्टाध्यायी में अध्ययन करना चाहते हैं, वे इन सूत्रों और प्रत्याहारों को अच्छी तरह से याद कर लें ।
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